Monday, 29 October 2012

Sherda pahadi star bn gyi, ek din Reporter intrview lini Sherda pass aa.

Reporter:- What Is Your Favourite Dish & Drink? 
Sherda:- "Mother Of Potato" & "1Leg Mango Juice" 

Reporter: Main Samjha Nahi!? 

Sherda:- Hey Bhagwan tum anpad logunke English le ni uun. Mail ko "Aalu keema(Aalu ki ma) aur Langray Aam Ka Juice".
Guchhi khelan me bachpan bito, almora gaun maal main,
Bhudapa haldwani kato, jawani nainital main.
Ab sharir panchar hego, chimed pad gai gaal main,
Sherda sawa sher hi fas go baduwak jaal main.
Paruli:- tum miken katu pyar karchha?
Sherda:- athaa pyar karun, ab ke btu tiken.
Parul:- byaa baad le etuke pyar karla?
Sherda:- Agar tyor aadim miken pyar karn dyal to jrur karun.
Sherda ek baar ek Jyotish maharajak paas apan Janam Kundali le ber gaiyi.....

Jyotish:- Tyar naam sher da chhu?
Sherda:- hoy.
Jyotish:- Tyar syendik naam Paruli chhu?
Sherda:- hoy maharaj hoy...
Jyotish:- Tyar ek chail aur ek chaile le chhen?
Sherda: Bilkul theek kuneha maharaj.....
Jyotish:- Tyul aaj retti controlek dukan beti 10 kilo chawal kharidi...??
Sherda:- Maharaj main dhany he gaiyi aaj.. tum to antaryami chha... ab meiken yo bate diyo ki meri naukri kab lag jali??
Jyotish:- Are pagaal tu apn Ration Card li ber myar pass aa rechhe main to Janam kundli dekhun tabhe to batun tyeri naukri kab lag jal. :P :D
Biraw: halaa tu katu salak chhe?
Hathi: miken 5 saal hegayi..
Biraw: O izuuuuu tu to bhot thul hegechhe 5 salam...
Hathi: Myari iza miken raj Bornvita pilun... Aur tu katu salaki chhi..???
Biraw: miken to 7 saal hejal yo wal Baishag main...
Hathi: haay re, tu to bilkul bho jaisi lagnechhi......
Biraw: (Sharmate hue) : myar babu myar liji Jhandu Kesari Jeevan lareyi bazar be...... myar umar patt ni chalan loguken... :P
Sherda Paili bar Dilli gai, metro train mai safar karn lagri chhi aur 1 chaili dagedi takra gaiyi.
Sherda:- sorry 
Chaili:- stupid.
Thod dair bad 1 jawan chail le u chaili dagedi takra go. 
Chail:- sorry.
Chaili:- its ok.
Sherda:- kile re meri sorry ki spelling galat chhe kya.
बिलैन्ती प्वाथ

राम है गईं रामा, कृष्ण कृष्णा
बुद्ध भगवान है गईं बुद्धा-
के पढ़ी-लेखीं मैंस है गईं निबुद्धा !
इज मम्मी-मामा, बौज्यू डैडी
स्यैणीं सब है गईं लेडी

उईं मोट हाफसूल जस मडुवक कन्तर
आफर बटि ऐलैं ल्यायीं जस धानक कन्टर
उईं भाड़ उईं पटबाड़
उईं भटक जौव जाणि पाणिक नौव
जंगी-सुर्याव-आंगाक् बात-बात
आंगाक् चिर पड़ीं ल्वात
बाट बटीण बखत टाटा-टाटा !
आज ऐगोछा अघिल फ्यार कभै झन आया यै बाटा
ऐगो बौयाट ल्हैगे भेट-घाट
गुड् मौरनिंग, गुड इविनिंग, सबै जाग गुड-गुड
पैलाग-जी रौ, मैं रौं तु रौ-फरके हालौ पुठ !
दिदि-भुलि एक चुलि, मैं नानि तु ठुलि
तु कपटी मैं कपटी-बाइ में बस बकणईं सब
ऐ गयां हम यां कां बटि !

कां गाय उं दिराणि जिठाणि-दिज्यू काखि-जेड़जाक् दिन
कां गाय काक-जिठबाज्यु नन्द-भौजि-पौणिक दिन
भै हराय, बैणि हरायि-सिस्टर मिस्टर ! भ्यैर भ्यैरै !
नाई हराण मांण हरांण फरुवांकि चौल !

गौं-घरों तक लै छोपणौ हौल
भोलहुं स्याप बणि जाल यो गिदौल
ठपैक मारल कल्ज में
टापणि चीज हैरै ह्याव
कभै नि देखि इतणि असन-अब्याव
अंकल-आन्टी ! सौरी-सौरी हैगे औरी
के चै रौछा बांजि गे खतरकि घन्टी
क्वे छा रे ! जो फेड़ि द्यला मेरि फिन्द
मैंस-मैंस कैं यू-यू कै बेर धत्यूणईं
अणहोति !
के सब बिलैन्ती प्वाथ है गईं ?
Janki Joshi, (Gayeeka: Khol de mata Kol Bhawani Jhoda)

Aha gori ganga Bhagirathi ko ke bhala rewada
Aha gori ganga Bhagirathi ko ke bhala rewada

Aha khol de mata khol Bhawani dhaar main kewada
Aha khol de mata khol Bhawani dhaar main kewada

Aha ke lai raichhe bhet paava ke kholu kewada
Aha ke lai raichhe bhet paava ke kholu kewada

Aha nangara nishaan lye ru tero darbara
Aha nangara nishaan lye ru tero darbara

Aha gori ganga Bhagirathi ko ke bhala rewada
Aha khol de mata khol Bhawani dhaar main kewada
Paruli: Tum miken Katu pyaar karchha?
Sherda: Bhot jyada karnu.... ab k batu tuken...
Paruli: Shahjahank jatuk..???
Sherda: Hoy wee heber le jyada...
Paruli: Myar maranek baad Taj mehal banwala????
Sherda: Hoy bane diyul... Meil to Zameen le dekh hai, ab tyar marnek dair chhu.... :P :D
Ladki : Mike yasik Kile Dekhn lag re chhe? Tyari Koi Baini Nha Kya?
Sherda: Chhu. tabhe toh Dekhn Lagriyu. 
Ladki: Kile? 
Sherda: Myari Baini Ke ek BHOJI Chain.......:P
Bachpan main Serda.......

Sherda: babu... babu ab main eskul ni jan.... main ab job karun.....
Babu: Are sherwa aai to tu 8 main padnchhe, aalle bati ki job karle tu?????
Sherda: babu mi primary wali Cheiliyon ke tution padun..... :P
Sherda: Sab sab,,,,, myari syaeni hare ge.......report likh diyo!!!
Aadmi: Are sherda yo police station nha, yo to post office chhu pe... Hum ke kar saknu?????
Sherda: are yar ke karun.... khushi mari patt ni chal kan jan kan ni jani......
Sherda: Tyar naam ki chhu?
Paruli: Main tuken kile batul?
Sherda: Jhan bataye, me le tuken apn BMW car main ni baithul?
Paruli: Ki kow? BMW car...... oho myar naam Paruli, BA IInd year, Babuk naam Ram Singh,..... or....
Sherda: bus bus etuke bata.... jab BMW car lhe lyul toh jyada fir bataye.... :P :D
हिमालय का सौन्‍दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्‍दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्‍तराखंड के विभिन्‍न हिस्‍सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड
़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्‍यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्‍तराखण्‍ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्‍व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्‍सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्‍तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्‍होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्‍ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्‍मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।

कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्‍य लोक गीतों के माध्‍यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्‍त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्‍टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्‍न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्‍यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्‍कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाई। अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता था।

पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।

धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि

” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”

तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।

वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।

गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।

तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।

मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।

तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।

सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
हिमालय का सौन्‍दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्‍दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्‍तराखंड के विभिन्‍न हिस्‍सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड
़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्‍यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्‍तराखण्‍ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्‍व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्‍सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्‍तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्‍होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्‍ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्‍मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।

कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्‍य लोक गीतों के माध्‍यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्‍त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्‍टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्‍न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्‍यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्‍कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाई। अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता था।

पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।

धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि

” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”

तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।

वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।

गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।

तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।

मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।

तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।

सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
Paruli:- pyar aafi heja ya fir karan padu?

Sher Da:- agar Chaili sundr chh or scooty wai chh to pyaar aafi hejan.
OR agar chaili badsurt chh or HONDA CITY wai chhu to pyar karan padu..
ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
बुला ले वापिस पहाड़
मन व्याकुल है पाने को
तेरी ठंडी बयार।

तेरे चीड़ और देवदार
दाड़िम,काफल और हिसालू
आड़ू,किलमोड़े और स्ट्रॉबेरी
मन होता है खाने को बारबार।

तेरी साँपों सी वे सड़कें
शेर के मुँह वाले वे नलके
वे चश्मे और वे नौले
वह स्वाद ठंडे मीठे पानी का।

ऊबड़ खाबड़ वे रस्ते
वे चीड़ के पत्तों की फिसलन
वे सीढ़ीदार खेत तेरे
वे खुशबू वाले धान तेरे।

नाक से बालों तक जाते
लम्बे और शुभ टीके
वे गोरी सुन्दर शाहनियाँ
वे सुन्दर भोली सैणियाँ।

स्वस्थ पवन का जोर जहाँ
घुघुती का मार्मिक गीत जहाँ
काफल पाक्यो त्यूल नईं चाख्यो
की होती गूँज जहाँ।

हर पक्षी कितना अपना है
हर पेड़ जहाँ पर अपना है
कभी शान्त तो कभी चट्टानें
बहा लाने वाली तेरी नदियाँ।

वे रंग बिरंगे पत्थर
मन चाहे समेटूँ मैं उनको
हीरे भी मुझे न मोह सकें
पर तेरे पत्थरों पर मोहित हूँ।

वह छोटा सा शिवाला है
वह गोल द्याप्त का मन्दिर है
हर शुभ काम में साथ मेरे
वे गोल देव जो द्याप्त तेरे।

वह चावल पीस एँपण देना
वह गेरू से लीपा द्वार मेरा
चूड़े अखरोट का नाश्ता
वे सिंहल और वे पुए।

पयो भात के संग पालक कापा,
और रसीला रसभात तेरा
बाल मिठाई और चॉकलेट
अब और कहूँगी तो रो दूँगी।

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
सुन ले तू पुकार
मेरे मन की पुकार
ओ पहाड़, मेरे पहाड़!
घुघुती एक चिड‌िया का नाम है जो आम के पेड‌़ में बैठ के गीत गाती है, ये गीत एक स्त्री द्धारा अपने पति की विरह की भावनाओं को व्यक्त करता है, जिसका पति लदाख में तैनात है। गीत के बोल पढ़ कर समझिये और फिर गाने का मजा लीजिये।

घुघुती ना बासा, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
तेर घुरु घुरू सुनी मै लागू उदासा
स्वामी मेरो परदेसा, बर्फीलो लदाखा, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
रीतू आगी घनी घनी, गर्मी चैते क

याद मुकू भोत ऐगे अपुना पति की, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
तेर जैस मै ले हुनो, उड़ी बेर ज्यूनो
स्वामी की मुखडी के मैं जी भरी देखुनो, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
उड‌ी जा ओ घुघुती, नेह जा लदाखा
हल मेर बते दिये, मेरा स्वामी पासा, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
अतरै कि गठी धन तैरि लटी, 
तैर मैर दगोड छौरि नानछना बटि, 
चीत मैरो लि गै तैरी ढायी हाथै की लटि.
आदा बाटा छाडि गयै तसि नटि खटि,
तैर याद मेँ मेरि सुवा मैरी मरि मति.

अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
अले म्यार दगाड छि यो म्याव में, अले जानी कॉ छटिक गे। येल म्यार गाव गाव गाड़ीये है, मी कॉ ढूढ़ँउ इके इतु खूबसूरत छो यो, क्वे छटके ले जालो। क्वे गेवारिया या द्वार्हटिया तो म्यार खवाड फोड़ हो जाल दाज्यू देखो धैंई तुमिल कति देखि?


अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
ओ दाज्यू तुमले देखि छो
यारो बते दियो भागी
तुमले देखि छो यारो बते दियो भागी
रंगीली पिछोदी उकी कुटली घागेरी
आंगेड़ी मखमली दाज्यू मेरी दुर्गा हरे गे
सार कोतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
द्वारहाट कौतिक मेरी दुर्गा हरे गे
स्याल्दे कौतिक मेरी दुर्गा हरे गे
दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे – २
दुर्गा मीके खाली मै तो कलि
गुलाबी मुखडी उकी काई काई आंखि – २
गालडी उगे जैसी ग्यु की जै फुलुकी – २
सुकिला चमकीला दांता मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
दाज्यू तैल बजार मैल बजार द्वाराहटा कौतिक में
तैल बजार मैल बजार सार कौतिक में
सारी कौतिक ढूंढ़ई
हाय दुर्गा तू का मर गे छे पाई गे छे आंखी – २
मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान चान मेरी कमरा पटे गे
दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे – २
अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना – २
कौतिका सब घर ल्हे गये
कौतिका सब घर ल्हे गये
धार लहे गो दिना
म्येर आंखी भरीं लेगे
दाज्यू किले हसन नै छ
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
ओ हिरदा सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
सार कौतिक चान चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
हिरदा दुर्गा हरे गे
बतै दे दुर्गा हरे गे
हिरदा दुर्गा हरे गे
बतै दे दुर्गा हरे गे

Sherdal apn Bhoji k kapaw fod helo. sabul pucha, kile re Sherda kihi pagli rachho? Kile mara apn Bhoj ke tyul?

Sher Da :- mi jab le apn dagediyon hun puchhu phon mai kaik dagedi baat karn lagrechha toh sab kuni tyari Bhoji dagedi ..............!!!
रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ कैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा, उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा
रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ जैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा, उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा
गोरू बाछा अड़ाट लैगो भुखै गोठ पाना, गोरू बाछा अड़ाट लैगो भुखै गोठ पाना
तेरि नीना बज्यूण हैगे, उठ वे चमाचम, तेरि नीना बज्यूण हैगे, उठ वे चमाचम
घस्यारूं दातुली खणकि, घस्यारू दातुली खणकि,
 वार पार का डाना,
उठ मेरी नांरिंगे दाणी, उठ वे चमाचम, उठ मेरी नांरिंगे दाणी, उठ वे चमाचम
उठ भागी नाखर ना कर, पली खेड़ खाताड़ा, उठ भागी नाखर ना कर, पली खेड़ खाताड़ा
ले पिले चहा गिलास गरमा गरम, ले पिले चहा गिलास गरमा गरम
उठे मेरी पुन्यू की जूना, उठे मेरी पुन्यू की जूना, छोड़ वे घुर घूरा
ले पिले चहा घुटुकी, गुड़ को कटका, ले पिले चहा घुटुकी, गुड़ को कटका
रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ कैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमैगो घामा
Sher Da- I love u.
Paruli- apn shakal dekh rakhe tyul? 
Sher Da- dekh rakhe tabhe toh tyar pass aayu natar Nainitalek Madhulik pass ni jani...!...??

Sunday, 14 October 2012

Sher Da pehli bar Ranikhet Exp mai baith ber Dilli jan lagri chen.
'TRAIN mein WARNING LIKHI' thi: 'BINA TICKET SAFAR karne WALE YATRI HOSHIYAR', 

Sherda ': Waah..Re..Waah..! Rankaro, yek matlab janul "TICKET LHE RAKHO UU sb PAGAL CHHEN"..?
Sher da: Jo syeni apn aadim hun dareli uu seedhe swarg mai Jaali. 
Sher da ki syeni: Aur Jo ni dareli week liji to yo dharti hi swarg chhu.
Sher da ki chay ki dukan pe angrej apni biai k sath aaya.
Angrej: 2 cup tea please.
Sher Da: Rankare mil ki kapat karo? Tu kapti, tyor baap kapati, tyari yo "Rampat" kapti.
:D
Sher Da- I love u.
Paruli- apn shakal dekh rakhe tyul? 
Sher Da- dekh rakhe tabhe toh tyar pass aayu natar Nainitalek Madhulik pass ni jani...!...??
Sherdal apn Bhoji k kapaw fod helo. sabul pucha, kile re Sherda kihi pagli rachho? Kile mara apn Bhoj ke tyul?

Sher Da :- mi jab le apn dagediyon hun puchhu phon mai kaik dagedi baat karn lagrechha toh sab kuni tyari Bhoji dagedi ..............!!!
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
अले म्यार दगाड छि यो म्याव में, अले जानी कॉ छटिक गे। येल म्यार गाव गाव गाड़ीये है, मी कॉ ढूढ़ँउ इके इतु खूबसूरत छो यो, क्वे छटके ले जालो। क्वे गेवारिया या द्वार्हटिया तो म्यार खवाड फोड़ हो जाल दाज्यू देखो धै
ंई तुमिल कति देखि?


अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
ओ दाज्यू तुमले देखि छो
यारो बते दियो भागी
तुमले देखि छो यारो बते दियो भागी
रंगीली पिछोदी उकी कुटली घागेरी
आंगेड़ी मखमली दाज्यू मेरी दुर्गा हरे गे
सार कोतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
द्वारहाट कौतिक मेरी दुर्गा हरे गे
स्याल्दे कौतिक मेरी दुर्गा हरे गे
दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे – २
दुर्गा मीके खाली मै तो कलि
गुलाबी मुखडी उकी काई काई आंखि – २
गालडी उगे जैसी ग्यु की जै फुलुकी – २
सुकिला चमकीला दांता मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
दाज्यू तैल बजार मैल बजार द्वाराहटा कौतिक में
तैल बजार मैल बजार सार कौतिक में
सारी कौतिक ढूंढ़ई
हाय दुर्गा तू का मर गे छे पाई गे छे आंखी – २
मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे
सार कौतिक चान चान मेरी कमरा पटे गे
दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे – २
अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना – २
कौतिका सब घर ल्हे गये
कौतिका सब घर ल्हे गये
धार लहे गो दिना
म्येर आंखी भरीं लेगे
दाज्यू किले हसन नै छ
सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
ओ हिरदा सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
सार कौतिक चान चान मेरी कमरा पटे गे – २
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे – २
हिरदा दुर्गा हरे गे
बतै दे दुर्गा हरे गे
हिरदा दुर्गा हरे गे
बतै दे दुर्गा हरे गे

घुघुती एक चिड‌िया का नाम है जो आम के पेड‌़ में बैठ के गीत गाती है, ये गीत एक स्त्री द्धारा अपने पति की विरह की भावनाओं को व्यक्त करता है, जिसका पति लदाख में तैनात है। गीत के बोल पढ़ कर समझिये और फिर गाने का मजा लीजिये।

घुघुती ना बासा, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
तेर घुरु घुरू सुनी मै लागू उदासा
स्वामी मेरो परदेसा, बर्फीलो लदाखा, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
रीतू आगी घनी घनी, गर्मी चैते क

याद मुकू भोत ऐगे अपुना पति की, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
तेर जैस मै ले हुनो, उड़ी बेर ज्यूनो
स्वामी की मुखडी के मैं जी भरी देखुनो, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।
उड‌ी जा ओ घुघुती, नेह जा लदाखा
हल मेर बते दिये, मेरा स्वामी पासा, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा ssss, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।

Paruli:- pyar aafi heja ya fir karan padu?

Sher Da:- agar Chaili sundr chh or scooty wai chh to pyaar aafi hejan.
OR agar chaili badsurt chh or HONDA CITY wai chhu to pyar karan padu..
हिमालय का सौन्‍दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्‍दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्‍तराखंड के विभिन्‍न हिस्‍सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड
़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्‍यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्‍तराखण्‍ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्‍व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्‍सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्‍तुत किया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्‍होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्‍ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्‍मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।

कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्‍य लोक गीतों के माध्‍यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्‍त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्‍टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्‍न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्‍यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्‍कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाई। अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता था।

पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि “हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।” राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।

धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि

” मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने उत्तर दिया ” दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट”

तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि ” हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।

वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि ” हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।” यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।

गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।

तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।

मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।

तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।

सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
Sherda: Tyar naam ki chhu?
Paruli: Main tuken kile batul?
Sherda: Jhan bataye, me le tuken apn BMW car main ni baithul?
Paruli: Ki kow? BMW car...... oho myar naam Paruli, BA IInd year, Babuk naam Ram Singh,..... or....
Sherda: bus bus etuke bata.... jab BMW car lhe lyul toh jyada fir bataye.... :P :D
Sherda: Sab sab,,,,, myari syaeni hare ge.......report likh diyo!!!
Aadmi: Are sherda yo police station nha, yo to post office chhu pe... Hum ke kar saknu?????
Sherda: are yar ke karun.... khushi mari patt ni chal kan jan kan ni jani......
Ladki : Mike yasik Kile Dekhn lag re chhe? Tyari Koi Baini Nha Kya?
Sherda: Chhu. tabhe toh Dekhn Lagriyu. 
Ladki: Kile? 
Sherda: Myari Baini Ke ek BHOJI Chain.......:P
Ladki : Mike yasik Kile Dekhn lag re chhe? Tyari Koi Baini Nha Kya?
Sherda: Chhu. tabhe toh Dekhn Lagriyu. 
Ladki: Kile? 
Sherda: Myari Baini Ke ek BHOJI Chain.......:P
Paruli: Tum miken Katu pyaar karchha?
Sherda: Bhot jyada karnu.... ab k batu tuken...
Paruli: Shahjahank jatuk..???
Sherda: Hoy wee heber le jyada...
Paruli: Myar maranek baad Taj mehal banwala????
Sherda: Hoy bane diyul... Meil to Zameen le dekh hai, ab tyar marnek dair chhu.... :P :D